| कविता संग्रह >> बैठे-बैठे यकायक बैठे-बैठे यकायकअतुल कपूर
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नई कवितायें
 सच का दामन क्या छूटा हमसे बयार-ए-सफ़र में 
 चले बिदकते बिदकते झूठ के सहारे सफ़र में
 
 पहुँचना आसान मंज़िलों पर फ़ितरत नहीं अपनी 
 हम मापते हैं तमाम मुश्किलें मेयार-ए-सफ़र में
 
 ता-उम्र तख़मीना करते रहे इक तेरे सफ़र का 
 तेरे बाद बस यही किया हमने हमारे सफ़र में
 
 यार, मुहब्बत, अफ़साने, तबीयत, इत्मीनान 
 पीछे छूटा बहुत कुछ हमसे रफ़्तार-ए-सफ़र में
 
 ले गयी जिधर राह हमको उधर को चल दिये 
 हम तो कभी भी ना रहे इख़्तियार-ए-सफ़र में
 
 पीछे मुड़कर जब जब हमने देखा है 'बेलौस' 
 धुंधला धुंधला सब दिखता है गुबार-ए-सफ़र में
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- सच का दामन

 
 
		 





 
 
		 
